गाँव से, शहर घर से, कमरा खेत की मेंड से, पार्क की बेंच मेल-जोल से, फोन कॉल ख़त से, एस एम एस बस!! इतना भर विकास किया है मैंने bahut achchha likha shubhkamnayen. shahidkiduniablogspot.com
अपने बारे में फेंकना बड़ा अजीब लगता है, फिर भी थोड़ी बेशर्मी दिखाऊँ तो - बचपन गाँव में झौंपडी में खेलते गुजरा. अम्मी और नानाजी परियों, राजा-रानियों कि कथा कहानी सुनाते. कल्पनाओं और कथा-कहानियों के प्रति लगाव के बीज यहीं पड़े.
कुछ बड़े होने पर दादाजी का साथ मिला. हम दादाजी को चुटकुले सुनाकर हसांते और दादाजी हमें नात-नज्में सुनाकर बहलाते. शायरी से प्यार करना उन्होंने सिखा दिया. संवेदनाओं को महसूस करना वक्त कि देन हैं.
लेखन कि शुरुआत यो काव्य में हुई लेकिन आज तक एक-दो बार छपे तो गद्य में (कालेज की पत्रिका में छपी एक कविता को छोड़ दें तो). दैनिक हिन्दुस्तान में 3-4 लेख और नंदन में एक बाल कहानी. बस.
हालाँकि आज तक सैंकडो गीत-ग़ज़ल और कविताएँ लिख चुके हैं लेकिन सब हमारी डायरियों में खामोश हैं. किसी पत्र-पत्रिका में भेजने की हिम्मत आज तक नहीं होती.
ब्लॉग का ज़माना आया तो कुछ हौंसला हुआ. और इस तरह हम आपके सामने हाज़िर हैं. कुछ पुराना भी आप को झिलाते रहेंगे और नया भी.
बस!अपनी कीमती टिपण्णी ज़रूर भेजते रहिएगा.
6 टिप्पणियां:
hmmmmmm sach khate hain
maansikata to ab bhi wahi hai
pahnava badlne se kya hoga
bhaut achhi rachna
bahut khoob.
gharon p naam the naamon k saath uhde the
bahut talaash kia koi aadmi na mila
बहुत अच्छे!
Bilkul sahi.............
सही ....यही किया है हम सब ने
गाँव से,
शहर
घर से,
कमरा
खेत की मेंड से,
पार्क की बेंच
मेल-जोल से,
फोन कॉल
ख़त से,
एस एम एस
बस!! इतना भर विकास किया है मैंने
bahut achchha likha
shubhkamnayen. shahidkiduniablogspot.com
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