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जबकि
दिन
अपनी आँखें बंद कर चला
अंधेरे चार सूँ निकल पड़े हैं
जबकि
सभी
नर्म बिस्तर की पलकों में
हसीं ख़्वाबों से लिपटे पड़े हैं
जबकि
शौरोगुल
खामोशियों की आगोश में
बेखबर सोये पड़े हैं
जबकि
चाँद
आसमानी नदी में बहने लगा है
सितारे खिलखिला पड़े हैं
तब
आवारा परिंदा-सा भटकता है मन
आवारा खलाओ में, आवारा उम्मीदें लिए.....