सोमवार, 28 जुलाई 2008

बम-धमाकों के बाद

जब भी कहीं बम-धमाके होते हैं तो हर आम 'इंसान' की तरह मैं भी उनसे प्रभावित होता हूँ. और सोचता हूँ कि धरम के नाम पर ये अधर्म क्यों.
क्या इस्लाम के नाम पर जिहाद करने वाले कथित मुजाहिद्दीन या खुद को हिन्दू धरम का मुहाफिज़ बताने वाले कभी मेरी इस हालत को समझ पाएंगे ?

इसलाम के नाम पर किये गए
हर बम-धमाके के बाद
मैं सहम जाता हूँ.
हिन्दू मित्रों या सहकर्मियों से
नज़र नहीं मिला पाता
अपने नाम को नहीं पहनना चाहता कुछ दिन
डरता हूँ
कि उस पर
धमाकों में मरने वाले
उन निर्दोष बुजुर्गों, जवानों
औरतों और बच्चों के
खून के छीटें न लगे हों
जिन्हें अल्लाह ने ही हिन्दुओं के घर पैदा किया......
और इससे पहले कि
कोई हिंसक प्रतिक्रिया हो
हिन्दू बहुल क्षेत्र में रह रहे
अपने बुजुर्ग बाप को तिलक
और माँ को सिन्दूर कि ओट में छुपा देना चाहता हूँ
अपनी जवान बहन-बेटियों को
किसी हिन्दू स्त्री के गर्भ में उतार देना चाहता हूँ
अपने उन भाइयों और बेटों को
अस्सलाम अलैकुम की जगह
राम-राम जी का अभिवादन वाक्य थमा देना चाहता हूँ
जिन्हें ईश्वर ने ही
मुसलामानों के यहाँ पैदा किया.....
हर हिंसक प्रतिक्रिया के बाद
मैं एक बार फिर दहल जाता हूँ
कि
जान और 'इज्ज़त' बचाने के लिए
हिन्दू पहचान में छुपे
मेरे माँ-बाप,
बहन-बेटियाँ,
भाई और बेटे
हिन्दुओं से बदला लेने वाले
किसी कथित मुजाहिद्दीन के हाथ लग गये तो..........?

बुधवार, 23 जुलाई 2008

हम पेट में उगे हुए हैं

जब बच्चे थे
तो अच्छे थे
हल्ला-गुल्ला, धूम-धड़का
आँख-मिचौली, सैर-सपाटा
काग़ज़, कश्ती, बारिश, पानी
दादी, नानी, रात, कहानी
रिश्ते-नाते, प्यार की बातें
हँसना, रोना, और चिल्लाना
खाना, पीना, मौज उड़ाना
छोटी-बड़ी आस
और भूख, प्यास
सब कुछ था पर पेट नहीं था
जैसे-जैसे बड़े हुए
पेट भी हम में उगने लगे
जिसने पहले खाया बचपन
और फिर खाया मस्त लड़कपन
खाए सपनें और कहानी
रिश्ते-नाते, बारिश, पानी
फुर्सत खाई, उम्र भी खाई
अब हम को खा रहा है
हमें खुद के भीतर उगा रहा है
बरसों पहले हम में पेट उगे थे
अब हम पेट में उगे हुए हैं

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

तनहा चाँद

कल शब मुझ को तनहा पाकर
खिड़की में आ बैठा चाँद
यादें,बातें,चेहरें,नातें
लेके क्या-क्या बैठा चाँद
एक खुशबू ने आ कर
मेरे जिस्म को जैसे चूम लिया
शायद उसके दस्ते-हिना से
मुझको फिर छु बैठा चाँद
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
जाते हो तो जाओ, लेकिन
क़सम है मेरी आ जाना
जाने किस की भूली बातें
फिर दोहराने बैठ चाँद

(सितम्बर २००० में एक रोज़)

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

बिटिया सुहाना के लिए

सो जा बिटिया रानी, सो जा
बंद कर अब शैतानी, सो जा
नींद में परियां आएँगी
मीठे गीत सुनाएंगी
उड़न खटोले पर बिठला कर
परीलोक ले जाएँगी
वहां मिलेंगे चंदा मामा
पहने तारों जडा पजामा
दूध मलाई देंगे तुझको
और देंगे गुड-धानी, सो जा
सो जा बिटिया रानी, सो जा
मुझे हँसाने वाली पुडिया
तू है मेरी सोणी गुडिया
मेरी खुशियों का तू खजाना
मेरा खिलौना, मेरी सुहाना
सो जा पापा गएँ लौरी
सो जा अम्मी करे चिरौरी
सपनों कि महारानी, सो जा
मन जा गुडिया रानी, सो जा