जब बच्चे थे
तो अच्छे थे
हल्ला-गुल्ला, धूम-धड़का
आँख-मिचौली, सैर-सपाटा
काग़ज़, कश्ती, बारिश, पानी
दादी, नानी, रात, कहानी
रिश्ते-नाते, प्यार की बातें
हँसना, रोना, और चिल्लाना
खाना, पीना, मौज उड़ाना
छोटी-बड़ी आस
और भूख, प्यास
सब कुछ था पर पेट नहीं था
जैसे-जैसे बड़े हुए
पेट भी हम में उगने लगे
जिसने पहले खाया बचपन
और फिर खाया मस्त लड़कपन
खाए सपनें और कहानी
रिश्ते-नाते, बारिश, पानी
फुर्सत खाई, उम्र भी खाई
अब हम को खा रहा है
हमें खुद के भीतर उगा रहा है
बरसों पहले हम में पेट उगे थे
अब हम पेट में उगे हुए हैं
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का !
14 वर्ष पहले
6 टिप्पणियां:
bahut khoob bhai. bas likhte raho isi tarah.
anginat shubhkamnayen.
बिल्कुल सही लिख़ा है आपने।
bahut sahi...
bahut achha observation aur shabdon ka chinav
इतनी खूबसूरती से किसी बात को कह पाने का नाम हे कविता है - बहुत अच्छे!
बरसों पहले हम में पेट उगे थे
अब हम पेट में उगे हुए हैं
bhaut ghari baat
जब बच्चे थे
तो अच्छे थे
हल्ला-गुल्ला, धूम-धड़का
आँख-मिचौली, सैर-सपाटा
काग़ज़, कश्ती, बारिश, पानी
दादी, नानी, रात, कहानी
"hmm apna bachpan yaad aa gya, vhe pyara sa nanha masum sa bachpan"
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