कल शब मुझ को तनहा पाकर
खिड़की में आ बैठा चाँद
यादें,बातें,चेहरें,नातें
लेके क्या-क्या बैठा चाँद
एक खुशबू ने आ कर
मेरे जिस्म को जैसे चूम लिया
शायद उसके दस्ते-हिना से
मुझको फिर छु बैठा चाँद
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
जाते हो तो जाओ, लेकिन
क़सम है मेरी आ जाना
जाने किस की भूली बातें
फिर दोहराने बैठ चाँद
(सितम्बर २००० में एक रोज़)
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का !
14 वर्ष पहले
17 टिप्पणियां:
बहुत खूब जनाब! खूबसूरत ब्लॉग के लिए मुबारक बाद .लेकिन भाई इस अच्छी नज़्म को नज़्म ही रहने दें.ग़ज़ल की तोहीन क्यों करते हैं .ग़ज़ल के लिए मतला के साथ और भी शर्तें होती हैं.
बकया चीज़ें बहुत मुत्तासिर करती हैं.ऐसा ही लिखते रहें.
जनाब तालिब साहब
गलती से नज़्म को ग़ज़ल लिख गया था
याद दहानी कराने और अपनी कीमती राय टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया
wah kya baat hai
Nazm bahut khoob rahi zakir sir
ye line bhaut pasand aayi
यादें,बातें,चेहरें,नातें
लेके क्या-क्या बैठा चाँद
एक खुशबू ने आ कर
मेरे जिस्म को जैसे चूम लिया
शायद उसके दस्ते-हिना से
मुझको फिर छु बैठा चाँद
माशा अल्लाह बहुत खूबसूरती से कही है अपनी बात आपने. यूँ ही लिखते रहिये.
bahut khoob...
bahut khoobsurat blog hai aur rachnaayen wakai taarif ke kaabil hain..
एक खुशबू ने आ कर
मेरे जिस्म को जैसे चूम लिया
शायद उसके दस्ते-हिना से
मुझको फिर छु बैठा चाँद
vaah zaakir sahab...pahli baar aapke blog par aayi,,is nazm ne dil moh liya...achha huaa aapse milna ho gaya, varna itni khoobsoorat nazm kahan se padhti...bahut khoob
bahut sundar nazm..
है तो सुंदर नज्म, लेकिन जरा टेक्नीकली मुझे कहीं कहीं खटकती सी लगी। शायरी हो या नज्म ये खूब रियाज मांगती हैं। फिर एक वक्त ऐसा भी होगा कि आप जो कहेंगे वो सब काव्य होगा।
शुभकामनाएं!
najam ki samajh cartoonist ko kahan par apke blog shuru karne par shubhkamnayen
khobsoorat nazm hai, badhaayi.
Aur haan, coment box se word verification hataa den, suvidhaa hogi.
Jakir, main to shuru se hi tumhara qayal raha hoon. Very good. I am not worried definition of art as long as it touch my heart. to chahey yeh nazm ho ya ghazal ya rubaa'i does not matter.
Shubhkamnayen
Lalit
बहुत ही प्यारी लगी आपकी यह नज्म लिखते रहे
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
--बहुत खूब!! वाह!!
अच्छा है।
मानसी
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
जाते हो तो जाओ, लेकिन
क़सम है मेरी आ जाना
जाने किस की भूली बातें
फिर दोहराने बैठ चाँद
behad khoobsurat....behad haseen.....
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
क्या बात है जनाब...वाह....बहुत खूब.
नीरज
मेरे भीतर यारों कोई
गाँव सा बसता जाता है
राहें,टीले,पीपल,छप्पर
मुझमे बनाने बैठा चाँद
वाह जाकिर साहब, कमाल की रचना है।
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com
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