जब भी कहीं बम-धमाके होते हैं तो हर आम 'इंसान' की तरह मैं भी उनसे प्रभावित होता हूँ. और सोचता हूँ कि धरम के नाम पर ये अधर्म क्यों.
क्या इस्लाम के नाम पर जिहाद करने वाले कथित मुजाहिद्दीन या खुद को हिन्दू धरम का मुहाफिज़ बताने वाले कभी मेरी इस हालत को समझ पाएंगे ?
इसलाम के नाम पर किये गए
हर बम-धमाके के बाद
मैं सहम जाता हूँ.
हिन्दू मित्रों या सहकर्मियों से
नज़र नहीं मिला पाता
अपने नाम को नहीं पहनना चाहता कुछ दिन
डरता हूँ
कि उस पर
धमाकों में मरने वाले
उन निर्दोष बुजुर्गों, जवानों
औरतों और बच्चों के
खून के छीटें न लगे हों
जिन्हें अल्लाह ने ही हिन्दुओं के घर पैदा किया......
और इससे पहले कि
कोई हिंसक प्रतिक्रिया हो
हिन्दू बहुल क्षेत्र में रह रहे
अपने बुजुर्ग बाप को तिलक
और माँ को सिन्दूर कि ओट में छुपा देना चाहता हूँ
अपनी जवान बहन-बेटियों को
किसी हिन्दू स्त्री के गर्भ में उतार देना चाहता हूँ
अपने उन भाइयों और बेटों को
अस्सलाम अलैकुम की जगह
राम-राम जी का अभिवादन वाक्य थमा देना चाहता हूँ
जिन्हें ईश्वर ने ही
मुसलामानों के यहाँ पैदा किया.....
हर हिंसक प्रतिक्रिया के बाद
मैं एक बार फिर दहल जाता हूँ
कि
जान और 'इज्ज़त' बचाने के लिए
हिन्दू पहचान में छुपे
मेरे माँ-बाप,
बहन-बेटियाँ,
भाई और बेटे
हिन्दुओं से बदला लेने वाले
किसी कथित मुजाहिद्दीन के हाथ लग गये तो..........?
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का !
14 वर्ष पहले
10 टिप्पणियां:
एक कवि का दर्द, शब्दों के द्वारा .......बहुत सुंदर
दुखद है वह स्थिति जहाँ जान बचाने के लिए किसी को अपनी पहचान से मुकरना पड़े. मगर बम तो किसी भी पहचान से मुकरते हैं. न अल्लाह के भक्तों को बख्शते हैं और न ईश्वर के बन्दों को छोड़ते हैं.
भाई तुमने जो लिखा वो कईयों का सच है.
इसे कभी फिर ज़रूर देखना.कुछ कमियाँ बाद में खुद ही सुधार लोगे.
जो भावः तत्काल आये उसे लिख देना ,ठीक है.
सन्देश अच्छा है लेकिन जिसके अन्दर बे-पनाही है.घनघोर लम्बा अंधियाला है .
बहुत सुंदर .....
zakir, itna udaas hone ki zaroorat nahi.... samay ayega jab ham sab insaan aur bhartiya ki tarah rah sakenge...
बहोत ही सच्चाइ रखी है आपने दुनिया के सामने।
जान और 'इज्ज़त' बचाने के लिए
हिन्दू पहचान में छुपे
मेरे माँ-बाप,
बहन-बेटियाँ,
भाई और बेटे
हिन्दुओं से बदला लेने वाले
किसी कथित मुजाहिद्दीन के हाथ लग गये तो..........?
"bhut khub jakeer jee, desh prem ka jujba deekahee de rha hai"
जो दर्द आपने इस में लिखा है वह मार्मिक है ..वक्त बदले यही दुआ है
behad imaandari aor dil se likha gaya...aapki soch ko ddaad deta hun...
badhiya hain janab...
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