(परिवर्तन जीवन का नियम हैं. चाहे हम किसी परिवर्तन के खिलाफ हों या उसके तरफदार. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. बदलाव चलते रहते हैं. ये ही प्रकृति का नियम है, ये ही जीवन की गति. ऐसे ही एक परिवर्तन को कलमबंद किया है मैंने. उसकी अच्छाई-बुराई हमारी अपनी सोचों पर निर्भर करती है...... जाकिर)
पहली बार
किसी लड़के से
अकेले में मिलने पर
अब उस सोलह साला लड़की का
दिल नहीं धड़कता
न अब उसकी पलकें भारी होती हैं
न चेहरा शर्म से गुलनार
न अब वो मुस्कुराके
अंगुली पर दुपट्टा लपेटती है
न नज़रें नीची किये
अंगूठे से ज़मीन कुरेदती है
शब्द भी
अब उसके गले में नहीं अटकते
वह नए ज़माने कि लड़की है
नए ढंग से प्यार करती है
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का !
14 वर्ष पहले
13 टिप्पणियां:
शब्दों मैं वजन है....भाव भी सुंदर है ......बहुत अच्छे
:) सही कहा ..अच्छी रचना
सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप किससे मिल रहे हैं...
अच्छा लिखा है आपने... नया जमाना है नए तौर तरीके भी होंगे। खुशी खुशी स्वीकारें तो भी सच... ना स्वीकारें तो भी सच।
" ha ha ha bhut khub, naya jmana or new ladkee, good description"
Regards
अरे जाकिर ....अब हमें अपनी कविता बदलनी पड़ेगी जो हमने कभी लिखी थी.........बहुत खूब......
भईया अब लडके शर्माते हे.......
मे तो भागू सभी सुन्दरिया हे यहां तो नये जमाने की.........................................
धन्यवाद
वाह! बहुत उम्दा,बधाई.
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
bahut khoob bhai.
kya baat hai.ini saadgi se itni badi baat,kya kahna.
kamal hai kamal.
बहुत खूब! धन्यवाद!
सही कहा आपने। जब जिंदगी की हर चीज बदल रही है, तो भाव और अभिव्यक्ति के ढंग में भी बदलाव लाजमी है।
रमजान की मुबारकवाद आप को ओर आप के सभी जानपहचान वालो को ओर आप के परिवार को
jinke paas duppata hota hai...wo to ungli per lapetti hain...per duppate waliyon ko naye zamane ki kahne m zamane ko sharm aati h shyed... achi kavita hai aapki...
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