(इन दिनों आतंकवादी घटनाएँ लगातार बढती जा रही हैं. देश के बड़े-बड़े शहर उनके निशाने पर हैं. दिल्ली में भी उन्होंने कहर बरपा किया. इसी कारण मन बेहद क्षुब्द रहा. नेट पर जाने या ब्लॉग खोलने का मन भी नहीं किया. लेकिन ज़ख्मों को भुलाना ही पड़ता है. और दोस्तों की महफिल हमेशा मरहम का काम देती है, सो फिर आपकी महफिल में आ पहुंचा हूँ.
खैर.......... इस बार फिर अपनी पत्रकार मित्र सुनीता सैनी की कविता से रु-ब-रु करा रहा हूँ. वही सुनीता जो पिछली बार चिडिया बन कर उड़ जाना चाह रही थीं, इस बार देखिये क्या बनने की चाहत रखती हैं.............. जाकिर )
बयार बन कर
मैं बहना चाहूं
गाँव की महकती मिटटी में
रहना चाहूं
फूलों के संग खेलूँ
कलियों से बतियाऊं
लहराते खेतों सा लहराऊं
बादलों में मैं उड़ जाऊँ
नदियों का संग ले लूं
सरसों से रंग ले लूं
बहते-बहते
तुम्हारे घर आँगन जा पहुंचू
सोया हो जब तू खेतों में
लहराते-सरसराते हुए
चुपके से तुझको छु लूं
मस्त-मगन इस मौसम में
मतवाली बयार बन मैं घूमूं
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का !
14 वर्ष पहले
8 टिप्पणियां:
तुम्हारे घर आँगन जा पहुंचू
सोया हो जब तू खेतों में
लहराते-सरसराते हुए
चुपके से तुझको छु लूं
मस्त-मगन इस मौसम में
मतवाली बयार बन मैं घूमूं
" behtreen , khubsuret chaht or sunder abheevyktee, shayad hr kise ke hotee hoge"
regards
बयार बन कर
मैं बहना चाहूं
गाँव की महकती मिटटी में
रहना चाहूं
फूलों के संग खेलूँ
कलियों से बतियाऊं
लहराते खेतों सा लहराऊं
बादलों में मैं उड़ जाऊँ ।
बहुत निश्छल चाह है। ऐसी अभिलाषा को मेला सलाम।
तुम्हारे घर आँगन जा पहुंचू
सोया हो जब तू खेतों में
लहराते-सरसराते हुए
चुपके से तुझको छु लूं
मस्त-मगन इस मौसम में
मतवाली बयार बन मैं घूमूं
bahut sunder
बहुत खूब.......मित्र शुक्रिया....इसे बांटने के लिए....
ओर हाँ अपना लिंक दुरस्त करो..मेरी पोस्ट एक साल पहले दिखा रहा है.
बहुत ही सुन्दर कविता, धन्यवाद
सुनीता सैनी को पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.
suneeta ki kavita ab paripakvta ki taraf jaa rahi hai.
naye rachnakaar ko jagah dene k liye bhai zakir ka aabhaar.
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