अपने बारे में फेंकना बड़ा अजीब लगता है, फिर भी थोड़ी बेशर्मी दिखाऊँ तो - बचपन गाँव में झौंपडी में खेलते गुजरा. अम्मी और नानाजी परियों, राजा-रानियों कि कथा कहानी सुनाते. कल्पनाओं और कथा-कहानियों के प्रति लगाव के बीज यहीं पड़े.
कुछ बड़े होने पर दादाजी का साथ मिला. हम दादाजी को चुटकुले सुनाकर हसांते और दादाजी हमें नात-नज्में सुनाकर बहलाते. शायरी से प्यार करना उन्होंने सिखा दिया. संवेदनाओं को महसूस करना वक्त कि देन हैं.
लेखन कि शुरुआत यो काव्य में हुई लेकिन आज तक एक-दो बार छपे तो गद्य में (कालेज की पत्रिका में छपी एक कविता को छोड़ दें तो). दैनिक हिन्दुस्तान में 3-4 लेख और नंदन में एक बाल कहानी. बस.
हालाँकि आज तक सैंकडो गीत-ग़ज़ल और कविताएँ लिख चुके हैं लेकिन सब हमारी डायरियों में खामोश हैं. किसी पत्र-पत्रिका में भेजने की हिम्मत आज तक नहीं होती.
ब्लॉग का ज़माना आया तो कुछ हौंसला हुआ. और इस तरह हम आपके सामने हाज़िर हैं. कुछ पुराना भी आप को झिलाते रहेंगे और नया भी.
बस!अपनी कीमती टिपण्णी ज़रूर भेजते रहिएगा.
3 टिप्पणियां:
wah kya baat hai
insaan kaha hai insaan kaha hai
kamaal kaha hai
Zakir
likhte jaaye dost
बहोत खूब। ज़ाकिर साहब एसे ही लिख़ते रहीए।
बहुत खूब !
एक टिप्पणी भेजें