सोमवार, 9 मार्च 2009

आओ हमदम खेलें होली!

ग्रामीण मुस्लिम परिवार में पैदा होने के कारण कभी होली खेल तो नहीं पाया लेकिन होली के हुड दंग खूब देखे। बचपन में मन में ये सवाल ज़रूर उठता कि हम ये त्यौहार क्यों नहीं मनाते। अलग-अलग रंगों से लिपे-पुते चेहरे बहुत अच्छे लगते थे। मन करता में भी दोस्तों की टोली में भाग कर खूब-खूब होली खेलूँ। उस वक्त हमारे गावं की होली होती भी मजेदार थी।

होली से लगभगएक महीने पहले से ही गावं में शाम ढले होली गायन शुरू हो जाता। गावं के एक किनारे बने शिव मन्दिर में कई टोलियाँ जमा हो जाती और देर रात तक जमी रहतीं। फ़रवरी की गुलाबी सर्द रातों में रजाई में दुबके हुए दूर से आती स्वर लहरियों को सुनते कब नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता था।

होली से एक हफ्ते पहले तो हालत पूरी तरह रोमांचक हो जाते थे। ये समय होता लठमार होली का। (कुछ कुछ मथुरा जैसी। दरअसल हमारा गावं यादव बहुल है, इस लिए होली में राधा-कृष्ण वाले रंग देखने को मिल जाते थे) इन दिनों गावं की महिलायें, पुरुषों पर भारी होती। अजब नज़ारा होता। शाम के समय पुरुषों की टोलियाँ निकलती और महिलाएं उन पर लकड़ी-डंडों से वार करतीं। कुछ पुरूष तो मार खाने में मशहूर थे। खूब पिटते और हँसते। सब कुछ प्यार भरा, रसमय और जादुई।

फ़िर आता रंग यानी धुलेंडी का दिन। सवेरे-सवेरे खेतों का काम निपटा कर रंगबाजी के लिए सब तैयार हो जाते। लेकिन रंग कहीं नहीं होता था। पानी में घुला गोबर, राख और कीचड़। हम अपने घर से इस रंगबाजी का नज़ारा देख कर मज़े में हँसते रहते। लगभग ४ बजे के बाद होती असली धुलेंडी। लोगबाग गावं के एक किनारे (जहाँ एक दिन पहले होली जलाई जाती) जमा हो जाते। झांकियां निकलती । लकड़ी के घोडे सजाये लोग आते और नाचते। पूरी सात टोलियाँ होती। हर मोहल्ले की एक टोली। हर टोली की अलग गायक मण्डली और अलग किस्से।

अलग-अलग करतब। कोई महिला के कपड़े पहन कर नाच रहा है तो कोई सर पर अंगीठी रखे कुछ पका रहा है। आस-पास के घरों की छतें महिलाओं और बच्चों से भरी रहतीं। हवा में खूब अबीर-गुलाल उड़ता। (बस इसी समय असली रंग का इस्तेमाल होता) । पूरा आसमान रंगों से भरा होता। तब मेरी इच्छा अपने आप पूरी हो जाती ।

इस मेले को देखने मुस्लिम परिवार भी आ जाते। आस-पास के गावं भी आते। होली की परिक्रमा के बाद ये जश्न समाप्त होता। मुझे फ़िर अगली होली का इंतज़ार होता।

लेकिन अब गावं की ये होली समाप्त हो चुकी है। सिर्फ़ रंग और दारु ही बची है।

अगर होली पर गावं में होता हूँ तो शाम को उस होली चौक तक ज़रूर जाता हूँ। इस इंतज़ार में की शायद कोई एक मण्डली ही इस बार पहले जैसी होली मनाने आई हो । दिल चाहता है काश! वो होली फ़िर लौट आए तो इस बार मैं ज़रूर खेलूँगा।

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आप सब को होली की बहुत-बहुत बधाई !

पेश है होली पर किसी ख़ास के लिए लिखी गई कविता।


आओ हमदम खेलें होली

मैं तेरे चेहरे पर रंग दूँ

अपने चुम्बन के सारे रंग

तुम भी अपने प्रेम रस से

भिगो डालो मेरा हर एक अंग

रंग छूटे न, रस सूखे न

आयें-जाएँ कितनी होली

आओ हमदम खेलें होली

मैं भी अपने आलिंगन की

आओ भंग खिला दूँ तुमको

तुम अपने होटों की थोडी

दारु आज पिला दो मुझको

मस्ती और नशे का आलम

दुआ करो कभी होवे न कम

बिछड़ के गुजरें जितनी होली

आओ हमदम खेलें होली

बुधवार, 28 जनवरी 2009

आवारा मन



जबकि
दिन
अपनी आँखें बंद कर चला
अंधेरे चार सूँ निकल पड़े हैं
जबकि
सभी
नर्म बिस्तर की पलकों में
हसीं ख़्वाबों से लिपटे पड़े हैं
जबकि
शौरोगुल
खामोशियों की आगोश में
बेखबर सोये पड़े हैं
जबकि
चाँद
आसमानी नदी में बहने लगा है
सितारे खिलखिला पड़े हैं
तब
आवारा परिंदा-सा भटकता है मन
आवारा खलाओ में, आवारा उम्मीदें लिए.....

बुधवार, 31 दिसंबर 2008

नया साल मुबारक हो!


हर गुजरता पल अपने पीछे अनेक कड़वी-मीठी अनुभूतियाँ छोड़ जाता, जो हमारी स्मृतियों में संचित हो जाती हैं। हमें हर गुजरते पल से मोह भी होता है और उसके जाने से राहत भी।
भविष्य हमेशा उम्मीदों और आशाओं से भरा होता है। इस लिए हम हमेशा आने वाले के स्वागत दिल खोल कर करते हैं। तो आइये वर्ष २००९ का स्वागत हम इन आशाओं के साथ करें कि ये वर्ष हम सबके जीवन में सुख-समृधि और शान्ति ले कर आए। दुनिया भर में अमन-ओ-सकूं कायम हो- आमीन।
हर मंजर खुशहाल मुबारक हो यारो
सबको नया साल मुबारक हो यारो
फिर पलकों पर ख्वाब सजायें आओ भी
आशाओं के दीप जलाएं आओ भी
माजी की कडुवाहट को दफना दें इस पल
मुस्तकबिल के पंख फैलाएं आओ भी
हिज्र ग़मों से, खुशियों से विसाल मुबारक हो यारो
नफरत को फिर प्यार बना कर देखो तो
सब अपने हैं, यार बना कर देखो तो
हम बदलेंगे, बदल जाएगा आलम सारा
अपने को संसार बना कर देखो तो
नयी सोच, नए ख्याल मुबारक हों यारो
एटम बम के धूम-धडाके तोड़ो भी
नयी पीढी को नई वसीयत छोडो भी
शान्ति, अहिंसा, विश्वा-बंधुत्व को फैलाएं
नए युग को नयी दिशा में मोडो भी
नए सुर, नई ताल मुबारक हो यारो
सबको नया साल मुबारक हो यारो.....


मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

जिंदगी गोल नहीं


दो क़दम आगे बढ़ने पर
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है,
जिंदगी वापस नहीं लौटती!
कुछ सम्बन्ध,
उड़ जाते हैं आसमानी परिंदे बन कर
कुछ चेहरे
जेहन से चिपके रहते हैं
झाड़ में उलझे
चीथड़ों की तरह
इंसान पेड़ नहीं,
चलता रहता है
तुम से फिर मिलन हो!
चाह है, विश्वास नहीं.
दुनिया गोल है
जिंदगी तो गोल नहीं...

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

अब हमें भी लड़ना होगा!

एक बार फिर दहशत और मौत का खूनी खेल! एक बार फिर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप!
लेकिन इन सबसे अलग, एक बार फिर हमारे बहादुर जांबाजों की विजय.
एक बार फिर हमारे पराक्रम की धूम. एक बार फिर हमारी एकता बरकरार.
एक बार फिर इंसानियत के दुश्मनों की करारी शिकस्त.
लेकिन अब आगे क्या............?
क्या देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ (इन) नेताओं की है?
नहीं!
ये जिम्मेदारी खुद हमारी भी है.
अब हमें खुद भी लड़ना होगा! इस आतंकवाद के खिलाफ!
और इसके लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है, धर्म और जाति से हटकर, एक इंसान के रूप में हम ये लडाई लडें.
ये भी जान लें कि हमारी लड़ाई मात्र चंद आतंकवादियों से नहीं, बल्कि एक विकृत विचारधारा से है. और आतंकवादियों को मारने के लिए हमें उस विचारधारा को मारना होगा. हमें अपने बीच से इस तरह के विचारों वाले लोगों की पहचान खुद करनी होगी. उनका सामाजिक बहिष्कार करना होगा. उन्हें कानून के हवाले करना होगा! धर्म-जाति ही नहीं, रिश्ते-नातों से ऊपर उठ कर.
जनता में प्यार और भाईचारे का सन्देश फैलाना होगा. ज़हर उगलने वालों को अपने बीच से खदेड़ना देना होगा.
लड़ाई बेशक लम्बी है, लेकिन जीत हमारी ही होगी.
............ अगर हम ऐसा कर पाए तो, ये, आतंकवाद के शिकार, निर्दोष और मासूम लोगों के प्रति हमारी सच्ची shridhaanjli होगी.
और अगर हमने ऐसा नहीं किया तो याद रखिये, आतंकवादियों की एक फौज तेजी से हमारी तरफ भी आ रही है, जिसके हाथों में मौत के (धर्म निरपेक्ष) हथियार है, और जो बिना हिन्दू-मुसलमान के भेद-भाव के सब को मौत बाँटेंगे.

रविवार, 2 नवंबर 2008

कभी-कभी



कभी-कभी मन करता मेरा
दूर कहीं पर एक जंगल हो,
नदिया हो या साफ़ झील हो
गर्मी के लम्बे-लम्बे दिन,
संडे की हो तेज दुपहरी
चिडियों की चह-चह, मह-मह में
फूलों की भीनी खुशबू में
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
झील किनारे, पेड़ के नीचे
बैठे हों केवल मैं और तुम
लेकर दुनिया भर की बातें.

कभी-कभी मन करता मेरा......

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

शुभकामना




सभी मित्रों और देशवासियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!