कभी-कभी मन करता मेरा
दूर कहीं पर एक जंगल हो,
नदिया हो या साफ़ झील हो
गर्मी के लम्बे-लम्बे दिन,
संडे की हो तेज दुपहरी
चिडियों की चह-चह, मह-मह में
फूलों की भीनी खुशबू में
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
झील किनारे, पेड़ के नीचे
बैठे हों केवल मैं और तुम
लेकर दुनिया भर की बातें.
कभी-कभी मन करता मेरा......
10 टिप्पणियां:
चिडियों की चह-चह, मह-मह में
फूलों की भीनी खुशबू में
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
झील किनारे, पेड़ के नीचे
बैठे हों केवल मैं और तुम
लेकर दुनिया भर की बातें.
ओर थम जाये वक़्त भी अपने पाँव रोककर ....बहुत अच्छा लिखा दोस्त
कभी-कभी मन करता मेरा
दूर कहीं पर एक जंगल हो,
नदिया हो या साफ़ झील हो
गर्मी के लम्बे-लम्बे दिन,
बहुत सुंदर भाव हैं...
सुन्दर !
घुघूती बासूती
बहुत बहुत प्यारी रचना लिखी है आपने
Bahut sundar. So simple and so beautiful.
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
झील किनारे, पेड़ के नीचे
बैठे हों केवल मैं और तुम
लेकर दुनिया भर की बातें.
ek pyaee see masumm see chahet, beautifull..
Regards
आपने अपने नहीं सब के दिल की बात लिख दी है अपनी रचना में...वाह..
नीरज
भाई अगली मई मै हमारे यहां आ जायो सच मै आप की इस सुंद कविता की तरह से सुंदर झील मै दिखा दुगां ओर आप दिल भर कर सुंदर सुंदर कविताये लिखना.
धन्यवाद सुंदर कविता केलिये.
दिल ढूंढता है फ़िर वही फुर्सत के रात-दिन...
bahut khoob!
एक टिप्पणी भेजें