रविवार, 10 अगस्त 2008

छोटी सी आशा


इस बार प्रस्तुत है एक पत्रकार मित्र सुनीता सैनी की कविता.
दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी सुनीता उस वर्ग से आती हैं, जहां संघर्ष ज्यादा और प्राप्ति कम होती है. जहाँ रस्ते बने बनाये नहीं मिलते बल्कि बनाने पड़ते हैं. और अपने लिए रास्ते बनाने के संघर्षों ने ही उन्हें दूसरो से अलग बनाया है. इस से उन्हें एक नयी उर्जा मिली है कुछ अलग करने की.
दिल्ली के एक हिंदी दैनिक में पत्रकार सुनीता की कविताएँ पूरी तरह व्यक्तिगत होते हुए भी कई बार बरबस ही अभिभूत कर जाती हैं................. जाकिर हुसैन.




काश!
मैं कोई चिडिया होती
जहाँ-तहां मैं उड़ती फिरती
कभी धरती
कभी आकाश
मन चाही उडान मैं भरती
कभी होती मैं अपने पास
और कभी तुम्हारे पास
तुमसे बतियाती
तुम्हारे आँगन में इठलाती
कभी होती तुम्हारे घर की दीवारों पर
कभी तुम्हारी खिड़की चौबारों पर
टेबल पर तुम्हारी होती
और कभी किताबों पर
कोई मजबूरी
या बंदिश की डोरी
तब फिर मुझे बांध न पाती
मन चाहता तो साया बनकर
हर पल संग तुम्हारे आती
तुम्हारा घर आँगन होता
मेरा घर आँगन
तुम्हारा जीवन होता मेरा जीवन
मैं तुझमें ही जीती रहती
काश!
मैं कोई चिडिया होती

9 टिप्‍पणियां:

श्रद्धा जैन ने कहा…

wah kya baat hai kaise kaise khwaab dekh lete hain hum

achhi kavita hai zakir ji
sunita ji ko meri taraf se bhaut hardik badhayi de

شہروز ने कहा…

sunita mubarakbad !
zakir ko shabasi naye rachnakar se milwane ke liye.
kavita ko padhkar mujhe niranjan shrotriy ki kavita pankti yaad aa gayi, yahan sunita ko samarpit karte huye de raha hun:
tum parindon k par
kaat sakte ho
kaise katoge unki utkantha
jahan se janm lete hain par

Sajeev ने कहा…

नए चिट्टे की बधाई, लिखते रहें और हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करें...
आपका मित्र
सजीव सारथी

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुंदर कहा है

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

jakir bhai
aapki prastuti v
sunita ji ki kavita
dono hi behad shaandar
badhai........................

बेनामी ने कहा…

काश!
मैं कोई चिडिया होती

वाह काश मै भी उन पलो को लिख पाता
बहुत बढ़िया

Smart Indian ने कहा…

चिडिया को आज़ादी मुबारक!
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं! वँदे मातरम!

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत सुंदर सुनीता सैनी. keep it up.

Unknown ने कहा…

bahut khub golu dil ko bha gayi apki kavita
vo pyari si ladhki.