बुधवार, 28 जनवरी 2009

आवारा मन



जबकि
दिन
अपनी आँखें बंद कर चला
अंधेरे चार सूँ निकल पड़े हैं
जबकि
सभी
नर्म बिस्तर की पलकों में
हसीं ख़्वाबों से लिपटे पड़े हैं
जबकि
शौरोगुल
खामोशियों की आगोश में
बेखबर सोये पड़े हैं
जबकि
चाँद
आसमानी नदी में बहने लगा है
सितारे खिलखिला पड़े हैं
तब
आवारा परिंदा-सा भटकता है मन
आवारा खलाओ में, आवारा उम्मीदें लिए.....