रविवार, 2 नवंबर 2008

कभी-कभी



कभी-कभी मन करता मेरा
दूर कहीं पर एक जंगल हो,
नदिया हो या साफ़ झील हो
गर्मी के लम्बे-लम्बे दिन,
संडे की हो तेज दुपहरी
चिडियों की चह-चह, मह-मह में
फूलों की भीनी खुशबू में
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
झील किनारे, पेड़ के नीचे
बैठे हों केवल मैं और तुम
लेकर दुनिया भर की बातें.

कभी-कभी मन करता मेरा......