बुधवार, 31 दिसंबर 2008

नया साल मुबारक हो!


हर गुजरता पल अपने पीछे अनेक कड़वी-मीठी अनुभूतियाँ छोड़ जाता, जो हमारी स्मृतियों में संचित हो जाती हैं। हमें हर गुजरते पल से मोह भी होता है और उसके जाने से राहत भी।
भविष्य हमेशा उम्मीदों और आशाओं से भरा होता है। इस लिए हम हमेशा आने वाले के स्वागत दिल खोल कर करते हैं। तो आइये वर्ष २००९ का स्वागत हम इन आशाओं के साथ करें कि ये वर्ष हम सबके जीवन में सुख-समृधि और शान्ति ले कर आए। दुनिया भर में अमन-ओ-सकूं कायम हो- आमीन।
हर मंजर खुशहाल मुबारक हो यारो
सबको नया साल मुबारक हो यारो
फिर पलकों पर ख्वाब सजायें आओ भी
आशाओं के दीप जलाएं आओ भी
माजी की कडुवाहट को दफना दें इस पल
मुस्तकबिल के पंख फैलाएं आओ भी
हिज्र ग़मों से, खुशियों से विसाल मुबारक हो यारो
नफरत को फिर प्यार बना कर देखो तो
सब अपने हैं, यार बना कर देखो तो
हम बदलेंगे, बदल जाएगा आलम सारा
अपने को संसार बना कर देखो तो
नयी सोच, नए ख्याल मुबारक हों यारो
एटम बम के धूम-धडाके तोड़ो भी
नयी पीढी को नई वसीयत छोडो भी
शान्ति, अहिंसा, विश्वा-बंधुत्व को फैलाएं
नए युग को नयी दिशा में मोडो भी
नए सुर, नई ताल मुबारक हो यारो
सबको नया साल मुबारक हो यारो.....


मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

जिंदगी गोल नहीं


दो क़दम आगे बढ़ने पर
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है,
जिंदगी वापस नहीं लौटती!
कुछ सम्बन्ध,
उड़ जाते हैं आसमानी परिंदे बन कर
कुछ चेहरे
जेहन से चिपके रहते हैं
झाड़ में उलझे
चीथड़ों की तरह
इंसान पेड़ नहीं,
चलता रहता है
तुम से फिर मिलन हो!
चाह है, विश्वास नहीं.
दुनिया गोल है
जिंदगी तो गोल नहीं...

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

अब हमें भी लड़ना होगा!

एक बार फिर दहशत और मौत का खूनी खेल! एक बार फिर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप!
लेकिन इन सबसे अलग, एक बार फिर हमारे बहादुर जांबाजों की विजय.
एक बार फिर हमारे पराक्रम की धूम. एक बार फिर हमारी एकता बरकरार.
एक बार फिर इंसानियत के दुश्मनों की करारी शिकस्त.
लेकिन अब आगे क्या............?
क्या देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ (इन) नेताओं की है?
नहीं!
ये जिम्मेदारी खुद हमारी भी है.
अब हमें खुद भी लड़ना होगा! इस आतंकवाद के खिलाफ!
और इसके लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है, धर्म और जाति से हटकर, एक इंसान के रूप में हम ये लडाई लडें.
ये भी जान लें कि हमारी लड़ाई मात्र चंद आतंकवादियों से नहीं, बल्कि एक विकृत विचारधारा से है. और आतंकवादियों को मारने के लिए हमें उस विचारधारा को मारना होगा. हमें अपने बीच से इस तरह के विचारों वाले लोगों की पहचान खुद करनी होगी. उनका सामाजिक बहिष्कार करना होगा. उन्हें कानून के हवाले करना होगा! धर्म-जाति ही नहीं, रिश्ते-नातों से ऊपर उठ कर.
जनता में प्यार और भाईचारे का सन्देश फैलाना होगा. ज़हर उगलने वालों को अपने बीच से खदेड़ना देना होगा.
लड़ाई बेशक लम्बी है, लेकिन जीत हमारी ही होगी.
............ अगर हम ऐसा कर पाए तो, ये, आतंकवाद के शिकार, निर्दोष और मासूम लोगों के प्रति हमारी सच्ची shridhaanjli होगी.
और अगर हमने ऐसा नहीं किया तो याद रखिये, आतंकवादियों की एक फौज तेजी से हमारी तरफ भी आ रही है, जिसके हाथों में मौत के (धर्म निरपेक्ष) हथियार है, और जो बिना हिन्दू-मुसलमान के भेद-भाव के सब को मौत बाँटेंगे.