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मंगलवार, 9 सितंबर 2008

नए ज़माने की लड़की

(परिवर्तन जीवन का नियम हैं. चाहे हम किसी परिवर्तन के खिलाफ हों या उसके तरफदार. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. बदलाव चलते रहते हैं. ये ही प्रकृति का नियम है, ये ही जीवन की गति. ऐसे ही एक परिवर्तन को कलमबंद किया है मैंने. उसकी अच्छाई-बुराई हमारी अपनी सोचों पर निर्भर करती है...... जाकिर)

पहली बार
किसी लड़के से
अकेले में मिलने पर
अब उस सोलह साला लड़की का
दिल नहीं धड़कता
न अब उसकी पलकें भारी होती हैं
न चेहरा शर्म से गुलनार
न अब वो मुस्कुराके
अंगुली पर दुपट्टा लपेटती है
न नज़रें नीची किये
अंगूठे से ज़मीन कुरेदती है
शब्द भी
अब उसके गले में नहीं अटकते
वह नए ज़माने कि लड़की है
नए ढंग से प्यार करती है